December 26, 2025

सिम्स के विशेषज्ञों ने विश्व पुनर्जीवन सम्मेलन–2025 में रखा शोध — प्रि-इक्लेम्पसिया, इक्लेम्पसिया और माइक्रोबायोटा पर अंतरराष्ट्रीय मंच पर चर्चा

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सिम्स के विशेषज्ञों ने विश्व पुनर्जीवन सम्मेलन–2025 में रखा शोध — प्रि-इक्लेम्पसिया, इक्लेम्पसिया और माइक्रोबायोटा पर अंतरराष्ट्रीय मंच पर चर्चा

 

बिलासपुर।

छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान (सिम्स) बिलासपुर ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी शोध क्षमता का परचम लहराया है। मिनाक्षी मिशन मेडिकल कॉलेज, मदुरई (तमिलनाडु) में 4 से 7 दिसंबर तक आयोजित वर्ल्ड रिज्यूस्किटेशन कांग्रेस –2025 में सिम्स के अधिष्ठाता डॉ. रमणेश मूर्ति, प्रदेश के वरिष्ठ माइक्रोबायोलॉजिस्ट तथा एनेस्थीसिया विभागाध्यक्ष डॉ. मधुमिता मूर्ति ने महत्वपूर्ण शोध प्रस्तुत किए। यह प्रतिष्ठित सम्मेलन 40 देशों के 4000 शोधकर्ताओं एवं वरिष्ठ चिकित्सकों की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ।

प्रि-इक्लेम्पसिया व इ क्लेम्पसिया पर सिम्स का शोध चर्चा का केंद्र

 

गर्भवती महिलाओं में होने वाली जानलेवा स्थिति प्रि-एक्लेम्पसिया विश्वभर में मातृ मृत्यु का प्रमुख कारण है। इसमें उच्च रक्तचाप, प्रोटीन यूरिया और भ्रूण के विकास में बाधा देखी जाती है। यह स्थिति प्रत्येक 10 गर्भवती महिलाओं में से लगभग 1 में पाई जाती है। यदि झटके (सीजर्स) आने लगें, तो यह इक्लेम्पसिया कहलाती है।

 

जोखिम अधिक किनमें?

 

पहली बार माँ बनने वाली महिलाएँ

 

40 वर्ष से अधिक आयु

 

BMI 35 से अधिक

 

परिवार में बीमारी का इतिहास

 

उच्च रक्तचाप, डायबिटीज या किडनी रोग

 

जुड़वाँ/एक से अधिक भ्रूण

 

सिम्स में बेहतर परिणाम

 

वर्ष 2025 में नवंबर तक सिम्स के एनेस्थीसिया आईसीयू में 66 गंभीर प्रि-इक्लेम्पसिया व इक्लेम्पसिया मरीज भर्ती हुए — कई को वेंटिलेटर सपोर्ट की आवश्यकता पड़ी। इसके बावजूद 95% महिलाएँ पूरी तरह स्वस्थ होकर घर लौटीं।

 

डॉ. मधुमिता मूर्ति ने बताया कि—

“समय पर निफेडिपीने, लाबेटालोल, नियंत्रित मॉनिटरिंग और आवश्यकतानुसार मैग्नीशियम सल्फेट देने से मरीजों में जटिलताओं पर प्रभावी नियंत्रण पाया गया।”

 

माइक्रोबायोटा और पुनर्जीवन परिणाम: सिम्स का शोध अंतरराष्ट्रीय मंच पर सराहा गया

अधिष्ठाता डॉ. रमणेश मूर्ति और वरिष्ठ माइक्रोबायोलॉजिस्ट द्वारा प्रस्तुत शोध

“Microbiota and Resuscitation Outcomes: An Overview”

सम्मेलन का मुख्य आकर्षण रहा, जिसे 40 देशों के विशेषज्ञों ने सराहा।

 

पुनर्जीवन के समय माइक्रोबायोटा का प्रभाव

 

1. सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव बढ़ना — जिससे ऊतकों को नुकसान हो सकता है।

2. इम्यून सिस्टम की तीव्र प्रतिक्रिया — शरीर में अत्यधिक सूजन पैदा करती है।

3. मेटाबोलिक परिवर्तन — ग्लाइकोलाइसिस और फैटी एसिड मेटाबोलिज्म प्रभावित होता है।

4. रक्तचाप व रक्त वाहिकाओं के कार्य पर असर — हृदय संबंधी प्रतिक्रिया कमजोर हो सकती है।

संभावित समाधान

प्रोबायोटिक्स

लक्षित एंटीबायोटिक थेरेपी

फीकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांटेशन (FMT)

शोध के अनुसार, माइक्रोबायोटा को बेहतर संतुलन में रखकर पुनर्जीवन परिणामों में सुधार की संभावना है, हालांकि इस दिशा में और बड़े शोध की जरूरत है।

अधिष्ठाता का वक्तव्य

अधिष्ठाता डॉ. रमणेश मूर्ति ने कहा—

“सिम्स गंभीर मरीजों की देखभाल और शोध के क्षेत्र में लगातार नई ऊँचाइयों को छू रहा है। प्रि-एक्लेम्पसिया, इ क्लेम्पसिया और माइक्रोबायोटा जैसे विषय वैश्विक स्वास्थ्य से जुड़े हैं। हमारे शोध को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिलना सिम्स के लिए गौरव का क्षण है।”

डॉ. मधुमिता मूर्ति का वक्तव्य

“प्रि-इक्लेम्पसिया व इ क्लेम्पसिया ऐसी स्थितियाँ हैं जिनमें समय पर उपचार जीवन बचा सकता है। सिम्स की टीम ने आधुनिक मॉनिटरिंग और प्रोटोकॉल आधारित उपचार से उत्कृष्ट सफलता दर प्राप्त की है।” —

डॉ. मधुमिता मूर्ति, विभागाध्यक्ष एनेस्थीसिया, सिम्स।

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